एकमुखी रुद्राक्ष और उनका माहात्म्य
एकमुखी रुद्राक्ष एकमुखी रुद्राक्ष साक्षात् शिव-स्वरूप है। यह बह्म्र-हत्या के पाप का नाश करता है। यह प्रत्येक धारक को अवध्यता प्रदान करता है और प्रत्येक स्रोत पर अग्नि का स्तंभन करता है। इससे सभी पापों का नाश होता है। एकमुखी रुद्राक्ष परतत्व-स्वरूप है, जिसे धारण करने से जितेन्द्रिय पुरुश पर-तत्व (शिव-तत्व) में लीन हो जाता है।
एकमुखी रुद्राक्ष ’एकोऽहं द्वितीयो नास्ति’ की भावना से समृ़द्ध जापक को अलौकिक, अद्वैत-भाव की मधुमती भूमिका में पहुँचा देता है। इसका धारणकर्ता शिवलोक में जाकर शिव के साथ आनंदपूर्वक रहने लगता है। षंकर के अनुग्रह से और किसी महान् पुण्य के योग से ही एकमुखी रुद्राक्ष की प्राप्ति, धारण और जप का संयोग मिलता है। एकमुखी रुद्राक्ष को धारण करनेवाला मरणशील व्यक्ति मोक्ष-मार्ग को प्राप्त कर लेता है इसके धारण से मनुश्य चिंतामुक्त और निर्भय हो जाता है। उसे किसी भी प्रकार की अन्य षक्ति और षत्रु से कोई कश्ट-भय नहीं होता। जहाँ एकमुखी रुद्राक्ष का सविध पूजन होता है, वहाँ साक्षात् लक्ष्मी निवास करने लगती है। रुद्राक्षों में एकमुखी रुद्राक्ष सर्वश्रेश्ठ, शिव स्वरूप, सर्वकामनासिद्धि-फलदायक और मोक्षदाता है। यह तो षास्त्रोक्त बात है। एकमुखी रुद्राक्ष के धारण के पश्चात् साधना-उपासना करने से ईश्वर-दर्शन और स्वसाक्षात्कार षीघ्र होता है। इस रुद्राक्ष का नियंत्रक-संचालक ग्रह सूर्य है। अतः सूर्यग्रह के समस्त दोश इसके धारण से नश्ट होते है। ज्योतिशशास्त्रीय निवारण इस रुद्राक्ष के धारण से षीघ्र ही हो जाता है । इससे षासकीय विरोध या सरकारी अकृपा का भी षीघ्र षमन होता है।
एकमुखी रुद्राक्ष सामाजिक-स्तर में उन्नयन लाता है और दूसरों पर षासन करने की नेतृत्वशक्ति को अद्भुत रूप् से विकसित करता है। लोकश्रुति है कि एकमुखी रुद्राक्ष्श जब फल के रूप में पृथ्वी पर टपकता है तो पृथ्वी पर टिकता नहीं, वह सीधे पाताल-लोक चला जाता है। इसीलिए तपस्वी रुद्राक्ष-वृक्ष के नीचे इसलिए भी आसन लगाकर बैठते है कि उन्हें कभी-न-कभी एकमुखी रुद्राक्ष के दर्शन होंगे। नेपाल के पशुपति मंदिर (काठमांडु) में एकमुखी रुद्राक्ष के दर्शन किये जा सकते है। संसार में एकमुखी रुद्राक्षों की संख्या अंगुलिगण्य है। मूल्य की दृश्टि से एकमुखी रुद्राक्ष बहुमूल्य ही नहीं, अमूल्य है। एक लाख से दस लाख तक या इससे भी अधिक रुपये ऐसे रुद्राक्षके लिए कम ही है। यह बेचने और खरीदने-वाले की स्वेच्छा और समझौते पर निर्भर करता है। बाजार में कभी-कभी किसी दुकान में किसी फकीर की झोली में या फूटपाथ पर एकमुखी रुद्राक्ष के दर्शन हो जाते हैं, किंतु यह असली रुद्राक्ष नहीं होता। ये रुद्राक्ष प्लास्टिक के या काठ के बने होते हैं, किंतु यह खूबी से कारीगरी की जाती है कि इन्हें पहचानना कठिन है। एक तीसरी प्रक्रिया भी है। द्विमुखी रुद्राक्ष की एक ओर लोहे का कवच पहना देने से एकमुखी रुद्राक्ष बनता है, क्योंकि उसका दूसरा मुख कवच के कारण उभर नहीं पाता। कभी-कभी इन रुद्राक्षों में शिव-लिंग, अर्धा इत्यादि के चिह्नन भी बने होते है; जिसे निहायत नकली समझना चाहिए। बाजार में एकमुखी रुद्राक्ष के नाम पर ये तीनों प्रकार के रुद्राक्ष बेचे जाते है; जिनकी कीमत एक रुपये से लेकर पाँच सौ रुपये तक हो जाती है। इन सभी रुद्राक्षों में ’अभावेशलिचूर्णम’ भाव से असली द्विमुखी रुद्राक्ष की लौह-कवच द्वारा पेड़ में लगे रहने की स्थिति में ही जिसे एकमुखी बना लिया जाता है, उसे स्वीकार किया जा सकता है।उसे ही एकमुखी रुद्राक्ष मानकर उसमें प्राण-प्रतिश्ठा की जा सकती है और पूजन, धारण और जप में उसका उपयोग किया जा सकता है। अथवा हरगौरी (अर्धनारीश्वरीभूत) रुद्राक्ष को भी एकमुखी रुद्राक्ष का स्थानाप माना जाता है।असली एकमुखी रुद्राक्ष तो चतुर्वर्ग-सिद्धिदायक, संसार में अप्रतिम, जिससे समता किसी की नहीं की जा सकती, मोक्ष-दायक और शिव-स्वरूप है। यह रुद्राक्ष अद्भुत और अलभ्य है।
एकमुखी रुद्राक्ष (तथा द्वादशमुखी रुद्राक्ष) ये दोनों रुद्राक्ष सूर्य के द्वारा संचालित होते है। ज्योतिश-शास्त्रीय दृश्टिकोण से इस रुद्राक्ष को धारण करने से सूर्य-जनित दोशों का निवारण हो जाता है। जन्म-कुंडली में सूर्य की विभिन्न स्थितियाँ होती है। सूर्य प्रतिकूल-स्थानीय होकर विभिन्न रोगों को जन्म देते हैं; जैसे - दक्षिण-नेत्र-संबंधी रोग, सरदर्द, हृदय-रोग, हड्डी का टूटना, त्वचा-रोग, उदर-संबंधी रोग, तेज बुखार, सरकार तथा उच्च अधिकारी से विरोध। इन सभी दोशों के निवारण के लिए एकमुखी या द्वादशमुखी रुद्राक्ष को धारण करना चाहिए। ज्योतिशीय दृश्टि से सूर्य दक्षिण-नेत्र, हृदय, मस्तिश्क, मस्तक, अस्थि इत्यादि का कारक है। यह ग्रह भगन्दर ;पिजनसंद्ध, स्नायु-रोग, अतिसार, उपात्र, मुखपाक, अग्निमंदता, इत्यादि रोगों का भी कारक बनता है, जब वह प्रतिकूल बन जाता है। यह ग्रह विटामिन ए और विटामिन डी को भी संचालित करता है, जिसको कभी से निशान्धता;छपहीज इसपदकदमेद्ध , अविकसित अस्थिरूप; बालक्रता जैसे रोग होते है। इन सबों के निवारण और निदान के लिए एकमुखी एवं द्वादशमुखी रुद्राक्ष उपयुक्त एवं धारणीय है।
मंत्र :
ॐ ह्रीं नमः (शिवमहापुराण , विद्येश्वरसंहिता )
ॐ नमः शिवाय
ॐ शिवम् मूलं बीजं रुद्राक्षम